बिहार में आमने-सामने की लड़ाई महागठबंधन और एनडीए के बीच की है। वैसे चुनाव में कई दल अलग से अपनी जीत के साथ ही बिहार में बदलाव की बातें कर रहे हैं। इन दलों में यशवंत सिन्हा की अगुवाई वाला तीसरा मोर्चा भी है और पप्पू यादव की जनाधिकार पार्टी भी। पप्पू यादव की पार्टी का बिहार के कई इलाकों में जमीनी पकड़ बढ़ी है और बाढ़,महामारी के दौरान उनके किये सहयोग और प्रयासों से उनके साथ जनता का जुड़ाव भी बढ़ा है। बिहार चुनाव में इस बार बसपा भी मजबूती से उतरने को तैयार है तो ओवैसी की पार्टी भी पूर्वी बिहार के जिलों में अपनी पकड़ के साथ जीत का दावा कर रही है। भीम आर्मी की अलग तैयारी है। इन सबके बीच कांग्रेस को बिहार में सरकार बनाने की चुनौती है। बिहार के महागठबंधन में अभी फिलहाल कांग्रेस ,राजद ,रालोसपा और वीआईपी पार्टी है। लेकिन सीट बंटवारे के नाम पर इन दलों के बीच अभी बहुत कुछ साफ नहीं है। फिर मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर भी उहापोह जारी है। इस पूरे मामले कांग्रेस की चुनौती यह है कि बिहार में कांग्रेस का संगठन कमजोर है और स्थानीय नेताओं में को सामंजस्य भी नहीं है। लेकिन पिछले दिनों राहुल गांधी ने कहा था कि बिहार में पार्टी पूरी ताकत से चुनाव लड़ेगी। जाहिर है राहुल गांधी के सामने चुनौती बड़ी है। इस चुनौती को राहुल कैसे पार करेंगे इस पर सबकी नजरें लगी हुई है।
बिहार के संगठन में दिख सकता है बदलाव
बिहार के राजनीतिक गलियारे में चर्चा है कि अब सोनिया गांधी की अध्यक्षता और राहुल गांधी के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ना है। ऐसे में माना जा रहा है कि बिहार के संगठन में बदलाव दिख सकता है। हालांकि ये भी कहा जा रहा है कि यह बदलाव कोई बड़ा नहीं होगा, क्योंकि सिर पर चुनाव है ऐसे में पार्टी संगठन स्तर पर कोई हैरतअंगेज फैसला लेने का जोखिम उठाना नहीं चाहेगी। कांग्रेस की बिहार ईकाई के सूत्रों का कहना है कि इतना तय है कि संगठन में युवा चेहरों पर भरोसा किया जा सकता है। वरिष्ठ नेता सदानंद सिंह सरीखे नेताओं को सलाहकार के तौर पर आइडिया लेवल पर काम करने की जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है। वहीं प्रेम चंद मिश्रा, अखिलेश सिंह युवा नेताओं पर दांव लगाया जा सकता है। खबर ये भी चुनाव से पहले पार्टी प्रभारी को बदला जा सकता है। अभी बिहार के प्रभारी गोहिल हैं। उनके बारे में कहा जाता है कि वे बिहार में बहुत कम ही रहते हैं।
एक नए समीकरण पर कांग्रेस का दांव
गौरतलब है कि कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रहे अशोक चौधरी के साथ कुछ विधायकों के पार्टी से अलग होने के बाद कौकब कादरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था। हालांकि आरजेडी के साथ बातचीत के बाद दोनों दलों ने मिलकर रणनीति बनाई थी कि वे 'माय बीबी' के प्लान पर काम करेंगे। इसमें 'माय' वोटर यानी (मुस्लिम+यादव) जुटाने की जिम्मेदारी आरजेडी की होगी। वहीं 'बीबी' यानी भूमिहार+ब्राह्मण वोटर को अपने साथ करने का जिम्मा कांग्रेस उठाएगी। इसी प्लान के तहत कांग्रेस ने मदन मोहन झा को प्रदेश अध्यक्ष बनाया था, जो कि अभी भी इसी पद पर बने हुए हैं।
क्या है माय बीबी प्लान?
बिहार में माना जाता है कि मुस्लिम+यादव लालू प्रसाद यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) का कोर वोटर हैं। वहीं 1990 के पहले राज्य के ब्राह्मण और भूमिहार कांग्रेस पर भरोसा करते रहे। 1990 से 1995 के दौर में ये वोटर समाजवाद के नाम पर छिटककर आरजेडी के साथ भी गए। वहीं राम मंदिर के मुद्दे की वजह से कुछ वोटर बीजेपी के साथ चले गए। बाद के दौर में ब्राह्मण और भूमिहार वोटर लगभग पूरी तरह से बीजेपी से साथ हो गए। उन्हीं वोटरों को दोबारा पाने के लिए कांग्रेस कोशिश कर रही है।
बिहार संगठन में जातीय स्थिति
इस वक्त बिहार कांग्रेस संगठन पर नजर डालें तो प्रदेश अध्यक्ष ब्राह्मण, चार कार्यकारी अध्यक्ष में दो उच्च जाति का और एक-एक दलित और मुस्लिम हैं। प्रचार समिति का प्रमुख भी अगड़ी जाति के नेता हैं। हालिया विधान परिषद के चुनाव में भी कांग्रेस ने अगड़ी जाति के समीर कुमार सिंह को चुना। इसके अलावा 2015 में जब महागठबंधन की सरकार बनी तो भी कांग्रेस के कोटे से चार मंत्री में दो अगड़ी जाति से और एक-एक मुस्लिम दलित बने थे।
महागठबंधन सत्ता में पहुंच सकता है
बिहार में हुए पिछले कुछ चुनावों का आंकलन करें तो पता चलता है कि आरजेडी के पास मुस्लिम+यादव का सबसे बड़ा कोर वोट बैंक है। लेकिन यह समीकरण सत्ता दिलाने में सफल नहीं है। क्योंकि मुस्लिम+यादव को मिलाकर करीब 30 फीसदी वोट होते हैं। ऐसे में करीब 70 फीसदी वोट दूसरे खेमे में हो जाते हैं। सत्ता तक पहुंचने के लिए इन कोर वोटरों के साथ और भी जातियों का वोट जरूरी है। इसके लिए कांग्रेस कोशिश में है कि वह भूमिहार 4.7% और ब्राह्मण 5.7% वोटर को गठबंधन के पक्ष में लाने की कोशिश करें। इसके साथ गठबंधन का यह भी प्लान है कि भूमिहार और ब्राह्मण वोटर काफी हद तक अपने प्रभाव से समाज की दूसरी जाति के वोटरों को भी जोड़ने में सफल रहते हैं। ऐसे में गठबंधन को उम्मीद है कि अगर यह प्लान सफल होता है तो कांग्रेस+आरजेडी बिहार में सत्ता तक पहुंच सकती है।