बाल श्रम जिसे हम अपने रोजमर्रा के जीवन में देखते हैं, लेकिन इसके परिणामों और प्रभावों को अनदेखा करते रहते हैं। आपके पिता के स्वामित्व वाले स्टाल में चाय की सेवा करने वाला बच्चा, वह बच्चा जो केवल 6 साल की उम्र में आपके वाहनों में हवा भरने का काम कर रहा है, या वह बच्चा जो आपको यातायात सिग्नल पर उपहार बेच रहा है, यह सभी बाल श्रम ही तो करते हैं। बाल श्रम का खतरा इतना हो गया है कि हम अधिकतर बेहतर जीवन जीने में उनकी मदद करने के बजाय उनकी स्थिति को अनदेखा कर देते हैं।
बाल श्रम (निषेध एवं नियमन) संशोधन विधेयक, 2016
बाल श्रम को देखते हुए 2016 में बाल मजदूर (निषेध और रोकथाम) अधिनियम में संशोधन किए गएऔर कानून को पहले से ज्यादा सख्त बना दिया गया। 26 जुलाई 2016 को बालश्रम निषेध संशोधन विधेयक 2016 पारित हुआ। 2016 में बाल श्रम कानूनों में दो प्रमुख संशोधन किए गए।14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए शिक्षा का अधिकार अनिवार्य किया गया।14 साल से कम उम्र के बच्चों से काम कराने पर प्रतिबंध लगा दिया गया। 14 साल से कम उम्र के बच्चे सिर्फ परिवार से जुड़े व्यवसाय में काम कर सकते हैं। यह कानून संगठित और असंगठित दोनों क्षेत्रों में लागू होता है। 14 से 18 साल तक के किशोरों को कुछ शर्तों के साथ काम करने की छूट दी गई। 14 से 18 साल तक के किशोर खतरनाक जगहों पर काम नहीं कर सकते हैं। इसे शिक्षा का अधिकार-2009 से भी जोड़ा गया है। इस अधिनियम में ये भी साफ-साफ कहा गया है कि बच्चे अपने स्कूल के समय के बाद ही पारिवारिक व्यवसाय में घर वालों की मदद कर सकते हैं। आपको बता दें कि लोकसभा ने बालक श्रम प्रतिषेध और विनियमन कानून 1986 में संशोधन के प्रावधान वाले बालक श्रम प्रतिषेध और विनियमन संशोधन विधेयक, 2016 को ध्वनिमत से पारित किया गया था और राज्यसभा में यह विधेयक पहले ही पारित हो चुका था।अगर इस अधिनियम यानि कानून का उल्लघंन करते हुए कोई पकड़ा जाता है तो उसपर भी सजा का प्रावधान है।
संशोधन के मुख्य तथ्य
14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों से काम करवाना संज्ञेय अपराध माना जाएगा। इसके लिए अपराधी के साथ-साथ माता-पिता को भी दंडित किया जाएगा।विधेयक में 14 से 18 वर्ष के बीच के बच्चों को किशोर के रूप में परिभाषित किया गया है। इस आयु वर्ग के बच्चों से किसी खतरनाक उद्योग में काम नहीं कराया जाएगा। किसी बच्चे को काम पर रखने पर कैद की अवधि 6 महीने से 2 साल तक बढ़ा दी गई है। पहले तीन महीने से एक साल तक की कैद की सज़ा का प्रावधान था। जुर्माना बढ़ाकर 20 हज़ार रुपए से 50 हज़ार रुपए तक कर दिया गया है। दूसरी बार अपराध करने पर एक साल से तीन साल तक की कैद का प्रावधान है।
बाल श्रम (निषेध और नियमन) नियम, 2017
आपको बता दें कि श्रम और रोजगार मंत्रालय की तरफ से 2 जून को बाल श्रम (निषेध और नियमन) नियम, 2017 को अधिसूचित किया गया। बाल श्रम (निषेध और नियमन) अधिनियम, 2016 में कुछ कमियां होने की वजह से इस अधिनियम में संशोधन किया गया है। नए कानून को ज़्यादा प्रभावी बनाने की कोशिश की गई है। बच्चे अब स्कूल के बाद केवल तीन घंटे ही पारिवारिक उद्यमों में मदद कर सकेंगे। बच्चे शाम 7 और सुबह 8 बजे के बीच पारिवारिक उद्यमों में मदद नहीं कर सकेंगे। एक दिन में केवल 5 घंटे और बिना आराम के 3 घंटे तक काम करने की अनुमति है।
देश में बाल श्रमिकों की संख्या
2011 की जनगणना के अनुसार भारत में बाल मजदूरों की संख्या 5 से 14 वर्ष की आयु के बीच 8.22 मिलियन थी। यह आंकड़ा सुधार का प्रतिनिधित्व करता है, क्योंकि बीते कुछ वर्षों में इस संख्या में गिरावट आई है। 1991 में भारत में 11.28 मिलियन बाल मजदूर थे और 2001 की जनगणना के अनुसार 12.59 मिलियन बाल मजदूर थे। भारत में बाल श्रम से संबंधित कानून कड़े कार्यान्वयन के चरण तक नहीं पहुंच पाए हैं। बाल मजदूरी पर अभी तक पूरी तरह से लगाम नहीं लग पाई है। आपको बता दें कि अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने पूरे विश्व के 130 ऐसे कामों की सूची बनाई गई है जिनमें बच्चों से काम करवाया जाता है। इस सूची में सबसे ज्यादा बीस उत्पाद भारत में बनाए जाते हैं। इनमें बीड़ी, पटाखे, माचिस, ईंटें, जूते, कांच की चूड़ियां, ताले, इत्र कालीन कढ़ाई, रेशम के कपड़े और फुटबॉल बनाने जैसे काम शामिल हैं। भारत के बाद बांग्लादेश का नंबर है जिसके 14 ऐसे उत्पादों का जिक्र किया गया है जिनमें बच्चों से काम कराया जाता है। फिलहाल, सकारात्मक नज़रिए के साथ पूरी क्षमता से इस समस्या से लड़ने की ज़रूरत है। साथ ही, ज़रूरत है मानवीय संवेदनाओं को कायम रखते हुए जीवजगत में अपनी श्रेष्ठता पुन: हासिल करने की, जो बाल श्रम की मौजूदगी के चलते संदेह के घेरे में है।